Tuesday, 23 December 2014

चाँदनी रात तारो की बारात
उतरी जमीं पर उजियारा साथ 
वृक्ष हिल रहे है मंद मंद गति से 
सुरभित हवा चली खुशबू के साथ

शान्ति पुरोहित 

मुक्तक

पत्थर में से दिल झाँका है 
कुदरत को कम क्यों आँका है 
विशाल धरा का महान दिल
प्रकृति रूप अति बाँका है
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

जँहा हो आत्मीयता घर वही होता है 
रिश्तो में हो पवित्रता घर वही होता है 
जुड़े है सुख दुःख एक दूजे के साथ 
मिलकर रहते है परिवार वही होता 
शान्ति पुरोहित 

मुक्तक

सर्द हवा कोहरे की ठिठुरन उघडा बदन
मुफ़लिस हालात मावठ मार उघडा बदन
गर्म शॉल गर्म हीटर गर्म रजाई गर्म खाना
अमीर सुविधा मुफ़लिस का उघडा बदन
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

सर्द हवा कोहरे की ठिठुरन उघडा बदन
मुफ़लिस हालात मावठ मार उघडा बदन
गर्म शॉल गर्म हीटर गर्म रजाई गर्म खाना
अमीर सुविधा मुफ़लिस का उघडा बदन
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

दिसंबर माह सर्दी का जोर 
सूरज गायब कोहरा घनघोर 
गर्म लिबास अलाव का ताप
राहत नही सर्द हवा का जोर

शान्ति पुरोहित 
रब ने मनुष्य बना कर उपहार दिया
अधर्म नाश करने को अवतार लिया 
श्रद्धानवत हूँ प्रभु चरणों में विश्वास
भक्ति की शक्ति दे प्रेमोपहार दिया
शान्ति पुरोहित
मन वितृष्णा से भर रोता पेशावर बच्चो के लिए 
कितने सपने और खुशियाँ थी पेशावर बच्चो के लिए 
जालिमो ने कुचल डाला उन पल्लवित पुष्पों को 
सांता भी अब जार जार रोये पेशावर बच्चो के लिए 
शान्ति पुरोहित

Monday, 24 November 2014

रब की मर्जी से होगा जो होगा 
अपनी किस्मत में होगा जो होगा 
अच्छा बुरा सहना ताकत रब देगा 
हँस के झेलेंगे होगा जो होगा 


जग की है ये अद्भुत रीत
होती है कब भी बिन प्रीत
पाया मैंने मन का मीत
केवल उसके मन को जीत
2
चमेली के फूल सी महकती
घर की बेटी सदा चहकती
सुरभित करती कोना कोना
अपनी मुक्त हँसी बिखेरती
3
दिल के अहसास को ना अनदेखा करो
अपनेपन के भाव को तुम देखा करो
निश्छल निस्वार्थ प्रेम की कद्र हो हमेशा
बेवफाई के फन को खुले दृग देखा करो
4
वृद्धावस्था में रखे माँ बापू का ध्यान
दोनों जग में ईश सम कहना मेरा मान
कहना मेरा मान सफल तूं जीवन करले
देंगे ईस अशीष तूं खली झोली भर ले
5
किस्मत की रेखा का किसके पास है लेखा
बनते बिगड़ते कईयो को हमने भी है देखा
है माया सब लेख की क्यूँ पीटता है लकीर
राजा बनते रंक आमिर को फकीरी में देखा
shanti purohit
जीवन मग में पिता का त्रानहर्ता पुत्र होता है
पिता की जर्जर अवस्था,बुढ़ापे का सहारा होता है
कुल दीपक माता-पिता का राजदुलारा होता है
माँ के सुख का आसमान,आँखों का तारा होता है
पिता की ऊँगली पकड़े डगमग चलते बचपन में
काँपते हाथ बुढ़ापे में हाथ में लिए होता है
माता के सुख का आधार,पिता की आँखों का नूर
माँ-पिता के प्राणों का धन,जीवन का आधार होता है
अंत समय देता जल अँजुरी ,तर्पण का अधिकारी
श्रवण कुमार जैसा हो पुत्र, मोह सबको होता है
*********************शान्ति पुरोहित
मेरा हर पल तेरा हो गया
मै मुक्त हूँ गम तेरा हो गया 
सुमिरन करता दिन रात तेरा
जीवन सार्थक मेरा हो गया

Friday, 14 November 2014

घुँघरू की आवाज .....



घुँघरू की आवाज .....
जब वो पैदा हुई तो माँ-बापू ने उसके बड़ी अफसरानी बनने के सपने देखे थे। लेंकिन तब सब खत्म हो गया जब, उससे प्यार और शादी करने का इच्छुक वो लड़का शादी वाले दिन ही उसका सौदा करके उसे बदनाम बाजार में बिठा दिया। और आज तक वो अपने प्यार को कोस रही है। घुघरूँ की आवाज में उसकी हर चीख गुम हो गयी है।
शान्ति पुरोहित

Thursday, 6 November 2014

भाग्यशाली

भाग्यशाली ……
राधे लाल जी ने एक पल के लिए भी नही सोचा था कि उनको बिना लाठी की मार खानी पड़ेगी | लाडले बेटे शिव की सगाई, बड़ी धूम-धाम से कुछ दिन पहले ही की थी| दो माह बाद शादी की तिथि घोषित हुई थी | पर ये क्या ! जिसकी बारात निकलनी थी | आज उसकी अर्थी निकल रही है | हर परिचित की आँखे नम थी | दुख की इस घड़ी में बहुत से लोग उनको सांत्वना देने को आये हुए थे | उन्ही में से किसी की आवाज आयी ” लडकी अभागी है| रिश्ता होते ही लडके को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा | दुःख का पहाड़ टूट पडा फिर भी लडके का पिता बोला ” आप कौन होते हो ये तय करने वाले, कि लडकी के कारण ये सब हुआ , वो तो नसीब वाली है जो ये शादी से पहले हुआ | किस्मत तो हमारी फूटी है | हमे उम्र भर पहाड़ सा दुःख झेलना है |,
शान्ति पुरोहित

Saturday, 1 November 2014

गीतिका

सुंदर है वो हाथ 
रहे असहाय साथ
सुंदर है वो हँसी
हो अपनों के साथ
सुंदर वो अहसास
नेह मिठास हो साथ
सुंदर है वो अश्रु
और के गम में साथ
सुंदर है वो दुआए
दुखियो के हो साथ
^^^^^^^^^^^^^^शान्ति पुरोहित

Tuesday, 14 October 2014

गीतिका

राम सीता हीरक मणि
वीर बालाजी उर धणी
राम का नाम रटते रह
पाप ताप नहीं रहणी
मोह तिमिर सब नष्ट होते
नाम सुमिर भव पार तरणी
राम का संदेश दिया
सीय माता दुःख हरणी
युगल नयन जल से भीगे
दीनि जब मुद्रिका मणि
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^शान्ति

Thursday, 2 October 2014

दोहा शिल्प परिचय -दो पद -प्रत्येक पद में दो चरण एक सम ,एक विषम ,विषम चरण में 13 मात्रा तथा सम चरण में 11 मात्रा - चरणानंत गुरु लघु से 


मेरा ये दोहा युवा शक्ति को देश सेवा के लिए प्रेरित करता हुआ 

नई पौध नया विचार , करे राष्ट्र निर्माण
पवित्र भूमि भारती , वारो इस पर प्राण
ये दोहा विरहिणी को इंगित करते हुए 
वन की शोभा मोर है,पि पि मस्त सुनाय
साजन बसे प्रदेश में , जिया होश गमाय ----
3
ये दोहा अपनों के बीच के वैर को दर्शाता हुआ 
अपनों से अपने लड़े ,जहर भरे है बैन
दिल क्रन्दन करता सदा , नैन न पावे चैन
4
ये दोहा मनुष्य के अंतर्मन की दशा को दर्शा रहा है 
होठो पर मुस्कान है, भीतर बैठा रोष
मन दुर्बल होता सदा , गम किया है पोष
बेटे के इंतजार में पिता की मन की अवस्था का चित्रण
सूनी आँखों से तके .बेटा आवे राह
बेटा अपने काम में ' बापू छूटा जाय
6
पिता का घर और सखी -सहेली से विछ्ड़ने का चित्रण 
सखी सहेली छूटती ,छूटा घर का द्वार
नैनो में अरमान ले , आयी पि के द्वार
शान्ति पुरोहित 

Tuesday, 16 September 2014

मेरी कलम से .....

कविता 
सुनहरे क्षण एक क्षण में गुजर गये 
पता ही नही चला कहाँ निकल गये 

कहे जब तक उन क्षणों का हाल मन से 
उससे पहले ही दगा दे चले गये 

मिले लंबे इंतजार के बाद वो क्षण 
पलक झपकते ही ओझल वो हो गये 

इच्छा कब पूरी हुई पता ही न चला
मीठे क्षण कब खिसके निकल गये

कुछ क्षण आकर केक्ट्स की मानिंद
दिल बगिया पर शूल से चिपक गये
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^शान्ति पुरोहित

Monday, 8 September 2014

बसंत ऋतु 
*1*****************************************
कुदरत का तोहफा अनमोल है बसंत ऋतु
ऋतुओ का राजा धरा श्रंगार है बसंत ऋतु
नव कोंपल आगाज पतझर की हुई विदाई
वृक्ष सघन सुमन सौरभ समीरण बसंत ऋतु
2
मानव को प्रकृति का अद्भुत उपहार है,
भौरों की गुन-गुन में प्रेम की पुकार है,
सुरभित है धरा और जगत हुआ प्रमुदित
खिल हुई अली-कली ,अनुपम श्रृंगार है !
***********************************************
शान्ति पुरोहित

Saturday, 6 September 2014

सख्त कानून की आवश्यकता

सख्त कानून की आवश्यकता

वर्तमान परिपेक्ष्य में हमारे देश में महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के साथ एक और समस्या मुहं बायें खड़ी है। और वो है महिलाओ के साथ होने वाले बलात्कार । वेदकाल में नारी को सम्मान की दृष्टी से देखा जाता था । वहीं मध्यकाल में नारी की स्थति में गिरावट आते- आते वो मात्र भोग्या बन पुरुषो के मन बहलाव का साधन बन कर रह गयी । वर्तमान में नारी की स्थति असमंजस के दौर से गुजर रही है । पुरुषो से बराबरी करने के चक्कर में नारी को शिक्षित होकर घर से बाहर निकलना पड़ा। जिसके दो मुख्य दुष्परिणाम आये । एक- नारी को घर और काम दोहरी जिम्मेदारी से दो- दो हाथ करने पड़े । और दूसरा वो पुरुष कार्मिको की कुदृष्टि का शिकार बनना पड़ा। वर्तमान में महिला सुरक्षा का कोई सख्त कानून नहीं है ।आज देश के कोने – कोने में महिलाओ का अपहरण, बलात्कार और फिर सुबूत मिटाने के लिए हत्या कर दी जाती है ।माता – पिता अपनी बेटियों को शहर से दूर दुसरे शहर पढने जाने दे नहीं सकते है । जिससे काबिलियत होने पर भी लडकियाँ अपनी इच्छित शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाती है । वर्तमान में दरिंदगी इस कद्र व्याप्त हो गयी है कि चार वर्ष की मासूम बच्ची को भी दरिन्दे बेरहमी से नोच देते है ।इसी कारण आज किसी भी घर में बेटी होते ही उसकी सुरक्षा की फ़िक्र माता – पिता को घेर लेती है । देश में हुए दामिनी रेप काण्ड के बाद जिस तरह बलात्कार की संख्या में वृद्धि हुई है बहुत ही चिंताजनक् है ।सर्वविदित ही है कि उत्तरप्रदेश के बंदायू में दो मासूम नाबालिग लडकियों को बलात्कार के बाद पेड़ से लटका दिया था । जो दरिंदगी की हद ही है । आवश्यकता है देश में महिला की सुरक्षा के लिए सख्त – से सख्त कानून बने जिससे दोषी को फांसी से कम सजा ना मिले ।
शान्ति पुरोहित बीकानेर राजस्थान पोस्ट नोखा बीकानेर

Wednesday, 3 September 2014

रोटी की ताकत

रोटी की ताकत
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
सूने खंडहर से घर में 
टूटी खटिया पर लेटी 


एक जीर्ण शीर्ण काया रमिया 
घर के कोने कोने को देखती है 


हसरत से आश्रय स्थल निहार
भूख खड़ी मंद मंद मुस्कराती 

खाली कनस्तर मुहँ चिडाता सा 
दाल भात का एक दाना भी नही


महाजन भी महंगाई के आगे मजबूर 
राशन का दिन ब दिन आसमान छूता दाम 


कृशकाय रमिया की पकड़ से कोसो दूर 
रमिया को इंतजार है तो बस मौत का
****************************************************शान्ति पुरोहित 



Tuesday, 2 September 2014

प्रेम विजय/ खुद को मिटाकर / सदैव हुआ प्रेम निहित / लेन देन मानस/ स्वार्थ ही हुआ प्रीत सिंचित / ह्रदय सरलता / कोमल भाव दिल को हार / अमर अनुराग / जग में हुआ *************************शान्ति पुरोहित
दोहा मुक्तक
*****************************************
हुई बावरी प्यार में,पाया मन का मीत
हार गयी दिल प्रीत में, फिर भी पाई जीत
अंतस पीड़ा का मर्म, जान सका न कोई
प्रेम बावरी मीरा,कृष्ण लिया है जीत
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शान्ति पुरोहित

Monday, 1 September 2014

मुक्तक

जीने की जब भी चाह होती है 
और मुश्किल अथाह होती है
जीत जाते हैं हालात भी गम से 
कोई तो कहीं और राह होती है

Wednesday, 27 August 2014

गीतिका

गीतिका 
नेह मेह अति बरसे
होकर बेकाबू नभ से
मेघ छोड़ अब पीछा
अवनि पुकारे कब से
हुआ बहुत जल प्लावन
त्राहिमाम करे सब रब से
बरसों जहाँ हो सूखा
मिले निजात अजल से
कितनी कहाँ हो बारिश
पूछो कभी भू तल से
हुआ बहुत जल प्लावन
करे शान्ति पाठ रब से
************************************शान्ति

Monday, 25 August 2014

सौरभ के संग खिलते सुमन 
      बौराए मधुप करे गुन-गुन 
गुलशन में आयी बहार सुगंध 
       कुहू कोकिल गाये मिठ्ठी धुन 
ह्रदय कुञ्ज रंग राग उमंग 
       लाल कनेर मस्त गुलमोहर 
चिताकर्षक वन खग विहग 
        बौराए मधुप करे गुन- गुन 

Sunday, 24 August 2014

माँ तुम हो.........

माँ हर पल जागने वाली 
खुद के जाये की फ़िक्र करने वाली 
दुआओ से झोली भर देने वाली 
दर्द हो साथ फिर भी खुश दिखने वाली 
आज सो गयी 
चादर ओढ़ कर 
हमेशा के लिए 
धवल काया काली पड़ गयी 
थम गया वक्त 
जब माँ सो गयी 
शांत चिर निद्रा में 
अंतस चीत्कार कर उठा 
खालीपन माँ के ना होने का 
माँ की हर याद से भरेगा 
अहसास हर पल ये 
माँ तुम अपने अंश में 
अहसास रूप में जिन्दा हो 
मा तुम हो माँ तुम हो
****************************

Friday, 22 August 2014

माँ के लिए...........

माँ ...के लिए ------



''माँ, ईश्वर की सबसे श्रेष्ठ रचना है | हम जब भी अपनी माँ को पुकारते है तो वाणी में श्रद्धा और कृतज्ञता भर जाती है | माँ पुकार सुन कर तुरंत हमे अपने स्नेहांचल में छुपा लेती है| माँ की महिमा अपार है| जब हम दुःख में होते है तो परमात्मा को नहीं माँ को ही याद करते है | माँ - करुना,प्रेम और त्याग की धारा है| एक बच्चे के लिए माता का स्वरूप पिता से बढ़कर है ; क्युकी वो उसे गर्भ में धारण करती है पालन पोषण भी करती है | जिस क्षण शिशु का जन्म होता है उसी क्षण माता का भी जन्म होता है| पर हम सब ये भूल जाते है कि माँ कितना कष्ट सहन करती है| हालांकि ये भी सत्य है कि शिशु जन्म से ही औरत माँ बनकर दुनिया का सबसे बड़ा और अमूल्य सुख भोगती है | माता के लिए उसके बच्चे से बढ़कर कोई सुख बड़ा नहीं होता है|
               पिता से पहले माता का ही नाम बच्चा लेता है | माता की सच्ची पूजा तो बच्चो का सचरित्र होने में है| माँ तभी खुश होती है जब उसका पुत्र यशस्वी हो | पुत्रिया तो दो वंश को अपने गुण से महकाती है | अपने शिशु के मूक कंठ को माता ही भाषा के बोल प्रदान करती है | इसलिए संसार के प्रत्येक कोने में अपनी भाषा को ''मातरभाषा'' कहा जाता है|
   आदि शंकराचार्य जी ने माँ के अलावा कभी किसी की सत्ता स्वीकार नहीं की|सांसारिकता से सम्बन्ध ना रखने वाले आदि शकंराचार्य जी भी माँ की भक्ति और माँ का त्याग नहीं कर सके थे|  हमारे देश में तो नदी,तुलसी  और गाय को भी माता के समान पूजा जाता है |
             पर आज के युग में माता के प्रति भाव भिन्न हो गये है| ये तो सर्वविदित ही है कि माता से पहले पिता ये संसार छोड़ कर जाते है;तब पीछे से पुत्र -पुत्रवधू स्वार्थ और सुख-सुविधाओ के वशीभूत हो कर माता को या तो नौकरानी की तरह रखते है या वो अकेली एक कोने में रहने को मजबूर होती है | जिस पुत्र को अपना रक्त पिलाकर,अपना समस्त सुख-दुःख त्याग कर बड़ा करती है ; वही पुत्र माँ को उनकी असक्त अवस्था में बोझ तुल्य समझने लगता है |                                                                                                                                             माँ सब कुछ बिना बताये ही जान लेती है
              अपने बच्चो की आँखे देखकर ही उनके मन की बात जान लेती है
              उनका भूत ,भविष्य और वर्तमान की चिंता में अपने को सहर्ष खपा देती है
              माँ तुझे कोटि -कोटि प्रणाम -शत -शत नमन                                                                                                                                                            चित्र -गूगल से साआभार ***********                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

मुक्तक

मुक्तक 
गले लगाती जिंदगी दर्द देते अपने
टूट जाते जब देखे सोचे कुछ सपने
होता है मुश्किल जीना दर्द के साथ 
ख्वाब शांती तोडे मिलकर सब अपने
**********शान्ति पुरोहित**************

सौरभ के संग खिलते सुमन 
      बौराए मधुप करे गुन-गुन 
गुलशन में आयी बहार सुगंध 
       कुहू कोकिल गाये मिठ्ठी धुन 
ह्रदय कुञ्ज रंग राग उमंग 
       लाल कनेर मस्त गुलमोहर 
चिताकर्षक वन खग विहग 
        बौराए मधुप करे गुन- गुन 

*****************************

मुक्तक

इतने बड़े जहाँ मे जी रहा हूँ अकेला 
कोई नही यहाँ मेरा हूँ निपट अकेला
स्वार्थी दुनिया स्वार्थियो का मजमा
निकल गया मै आगे पीछे छूटा मेला

गीतिका

जीवन है एक सुंदर सपना
लगता यहाँ हर कोई अपना 
कभी हँसाती कभी रुलाती 
कभी दिखाती प्यारा सपना 
जैसा भी प्रभु का दिया है
भोग रहे है मान कर अपना 
नही शिकायत इष्ट देव से 
करते सदा उनकी वन्दना 
आराध्य ही पार है लगाते 
आराधना ही ध्येय अपना 
शान्ति पुरोहित 

Tuesday, 19 August 2014


देते ज्ञान गीता का *****देखो कृष्ण सुजान
करो कर्म पार्थ तुम ****कर्ता मुझको मान
कर्ता मुझको मान *****छोड़ो मोह पिपाशा 
अपना पराया छोड़ ****लिखो धर्म परिभाषा
कह शांति समुझाय****झूठ के रिश्ते नाते
महासमर कौंतेय***** केवल धर्म निभाते
****************शान्ति पुरोहित *************

Tuesday, 12 August 2014

स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष्य में

स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष्य में
आजाद हिन्द
शहीद सहादत
भारत रत्न
******************
गुलामी बेडी
अगस्त क्रांति तोड़ी
फहरा ध्वज
********************
तांका 5 7 5 7 7
देश नमन
हिमालय मुकुट
जननी गंगा
सदा जय गुंजित
सर्व धर्म रक्षित
*****************शान्ति पुरोहित
       तुम रानी बनकर राज करोगी जब तुम किसी के घर की शोभा बनोगी |
         तुम जिस घर में जाओगी उस घर का बन्टाधार हो जायेगा |
''तुम बहुत भाग्यशाली हो|
एकदम गुलाब के फुल की तरह सुवासित होजब तुम पैदा हुई ना तो तेरे बाप को अपने व्यापर में बहुत बड़ा आर्डर मिला और हम उतरोतर तरक्की करते गये |
      तुम अभागी होउस कांटे की तरह जो शूल बनकर चुभता है तुम्हारे जन्म के दिन ही तुम्हारे बाप का काम-धन्धा सब चौपट हो गया हम रोटी को भी मोहताज हो गये थे 

धन और सम्पनता लडकी के भाग्य से कब और कैसे जुड़ गया? अर्थ को लडकी से जोड़कर इतना जहर क्यों उगला जा रहा है लडकी उदास बैठी सोच रही है

Monday, 11 August 2014

                                                                        
                                            
 तांका



      कटते वृक्ष 
फाड़ भी कटते 
जल दोहन 
प्रकृति का दोहन 
धरा विनाश सहे 


नियति नटी 
मानव को नचाये 
चाहे ना चाहे 
बहु रंग दिखाए 
मनु जान ना पाए 

Monday, 9 June 2014

तंगी

तंगी
कमला ने अपनी पडौसन सीता से पूछा '' तुम एक कमाने वाली और इतने जन खाने वाले है कम आय में कैसे चला लेती हो | घर में किसी चीज की कमी नहीं है |, '' और क्या करती हूँ बनिये से राशन उधार ले आती हूँ ; जब तक वो देता है काम चल जाता है | और नहीं देता है तो कुछ रूपये दे देती हूँ तो फिर देने लगता है |, सीता ने कहा |
    ' तुम भी तो घर में एक ही कमाने वाली हो,पति तो तेरा दारु पीकर पड़ा रहता है | उसे दारू के पैसे भी तुम ही को देने होते है | फिर कैसे होता है ये सब तुमसे ? सीता ने उत्सुकतावश पूछा |
              '' पैसो की तंगी तो रहती ही है पर में थोडा टाइम निकाल कर साहब लोगो के घर चौका बर्तन करती हूँ | मेम साहब कुछ दे देती है 

Sunday, 8 June 2014

मुहीम

दहेज नाम से ही उसे नफरत हो गयी | बहन की शादी में सबसे बड़ा रोड़ा था दहेज | उसने दहेज के विरुद्ध बहुत बड़ी मुहिम छेड़ने का मन बनाया था | इसके लिए एक टीम भी बनाई | पर उसे उस समय बड़ा झटका लगा जब उसकी टीम में से अधिकाँश लडको ने दहेज लेकर विवाह किया | 
       बहन की बारात बिना दुल्हन लिए लौट गयी | उसी मंडप में एक भला मानुष भी आया हुआ था | उसके साथ बहन का पाणीग्रहण संस्कार सम्पन हुआ | वही सज्जन दहेज विरोधी उसकी मुहिम का मुखिया घोषित हुआ |

नारी जीवन

                                  नारी जीवन
‘’यत्र नार्यस्तु पूज्यते,ते तत्र देवता ‘’ इससे समझा जा सकता है कि वैदिक काल में नारी को सम्मान की द्रष्टि से देखा जाता था| उसे सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त था| जैसे --वेदाध्ययन,शास्त्रार्थ करना, पति के साथ युद्ध भूमि में लड़ने जाना आदि आदि| 
              कुछ विदुषिया जैसे-- मैत्रेयी,गार्गी आदि उदाहरण है जिन्होंने स्वयं अपनी प्रबुधता और आत्मबल से अपनी अलग पहचान बनायी, समाज की नारियो को नई दिशा दी| मध्य काल में आते आते नारी की दशा में आमूल परिवर्तन हुआ| और आज तो नारी की जो हालत है वो सर्वविदित है | पांच वर्ष की बच्ची हो या 70 वर्ष की औरत कोई भी सुरक्षित नहीं है | हर रोज देश के हर भाग में नारी के साथ अत्याचार होते है | कानून भी कोई ऐसा नहीं बना कि औरत के साथ अत्याचार करने वाले दरिन्दे को सख्त से सख्त सजा मिल सके | बीसवी सदी में औरतो की ये हालत है जैसे वो जंगल राज में रहती है | लडकियों को पढने के लिए कहीं बाहर भेजते हुए माता- पिता की रूह काँप जाती है | अपनी बेटी के साथ कुछ अनहोनी ना हो इसलिए अधिंकांश माता- पिता तो टेलेंट होते हुए भी अपनी बेटियों को पढने बाहर नहीं भेजते है | सरकार को प्रभावी कानून बनाना चाहिए जिससे देश में औरत भी खुली हवा में संस ले सके |

( उसकी मुस्कुराहट )

चित्र प्रतियोगिता  (मुस्कराहट के लिए )

( उसकी मुस्कुराहट )

 आज मीरा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं | उसके पति ने उसकी लिखी सभी कहानिया ,आलेख और कविताओ की दो बुक बनवाने की हाँ भरी थी | मीरा की शादी को आज तीस वर्ष होने को आये है | घर परिवार की लगभग सब जिम्मेदारी से अब निवृत हो गयी | ज्यादा कुछ नहीं बस एक बेटा है जो पढ़ लिख कर विदेश में सेटल हो गया है | सास- ससुर और पति इन सबकी देख-भाल करने के बाद भी मीरा के पास थोडा वक्त बच जाता है | जिसका उपयोग वो अपने लेखन कार्य के लिए करती है |
                जब कॉलेज में थी तब से मीरा की रूचि साहित्य में थी| उसकी कविता और कहानी स्थानीय पत्र-पत्रिकाओ में छपने लगी थी | वो बड़ी साहित्यकार बनना चाहती थी | पर उसके पति को जो खुद पेशे से डॉ था को मीरा के लेखन कार्य से आपति थी | उनका कहना था कि कितना कम वक्त हमे हमारे लिए निकाल पाते है फिर उसमे भी अगर तुम लेखन कार्य में व्यस्त रहोगी तो हमारा साथ रह कर भी साथ नहीं रहने जैसा ही होगा | और फिर माँ भी गम्भीर बीमारी के कारण असहाय सी ही है | उसी दिन से मीरा ने अपनी लेखन रूचि को अपने मन के किसी कोने में बंद करके रख दिया |  उसी दिन से उसके चेहरे की मुस्कराहट जैसे कहीं खो सी गयी | आज तो मीरा के पति ने घर के कामो में मदद के लिए एक नौकर चौबीसो घंटे के लिए रख लिया है मीरा अब दुगुने जोश से अपनी किताब छपवाने की तैयारी में लग गयी है मीरा की खोई हुई मुस्कराहट जैसे वापस जीवंत हो कर उसके चेहरे पर खिलखिला रही है

शांति पुरोहित   
जल के बिना 
सृष्टि निर्वाह नहीं 
सदुपयोग 
है ये अमूल्य निधि 
धरती का अमृत 
2
नदी का नीर 
अवनि धरोहर 
सुरक्षित हो 
जल ही प्राणाधार 
प्रदूषित ना करो
शांति पुरोहित

नियति नटी
मानव को नचाये
चाहे ना चाहे
बहु रंग दिखाए
कोई समझ ना पाए

गाय हमारी 
संरक्षक सदैव 
काटो ना इसे 
धरोहर धरा की 
है आर्थिक संबल
तांका

जल के बिना 
सृष्टि निर्वाह नहीं 
सदुपयोग 
है ये अमूल्य निधि 
धरती का अमृत 
2
नदी का नीर 
अवनि धरोहर 
सुरक्षित हो 
जल ही प्राणाधार 
प्रदूषित ना करो

Saturday, 7 June 2014

मुक्तक समारोह ..... विषय धुँआ
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अहम पर चोट होती चंडी बन स्वभिमान बचाती
जीवन हो जाये धुँआ आत्मसात कर लेती
आत्म वेदना, दर्द की ज्वाला है नारी जीवन
सहती अनेको दर्द सदा कभी उफ्फ तक ना करती
शान्ति पुरोहित

Thursday, 5 June 2014

शिक्षा मंत्री की शिक्षा पर बहस हो या देश मे शिक्षा के स्तर पर

शिक्षा मंत्री की शिक्षा पर बहस हो या देश मे शिक्षा के स्तर पर

मेरे ख्याल से देश में शिक्षा और शिक्षा मंत्री दोनों पर बहस होनी चाहिए | इसके ये मायने है कि शिक्षा मंत्रालय जिस मंत्री के पास हो वो शिक्षित होगा तभी तो शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की के मार्ग को नए आयाम देकर देश के विकास में अपनी भागीदारी निभाएगा | आज देश में बहुत से ऐसे संस्थान हो गये है जो पैसो के लिए M .B .A .कराते है शिक्षा की गुणवत्ता से उनको कुछ लेना देना नहीं है उनका एक ही मकसद रहता है येन केन प्रकारेंण अर्थ उपार्जन करना | ऐसे संस्थानों को बंद कर शिक्षा की गुणवत्ता के लिए ध्यान देने की जरुरत है 
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