ज्योति-कलश
Friday, 22 August 2014
मुक्तक
इतने बड़े जहाँ मे जी रहा हूँ अकेला
कोई नही यहाँ मेरा हूँ निपट अकेला
स्वार्थी दुनिया स्वार्थियो का मजमा
निकल गया मै आगे पीछे छूटा मेला
2 comments:
विभा रानी श्रीवास्तव
22 August 2014 at 12:04
सुंदर मुक्तक
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Unknown
22 August 2014 at 18:33
आदरणीय विभा रानी श्री वास्तव जी दिदु आभार
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सुंदर मुक्तक
ReplyDeleteआदरणीय विभा रानी श्री वास्तव जी दिदु आभार
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