ज्योति-कलश
Monday, 11 August 2014
तांका
कटते वृक्ष
फाड़ भी कटते
जल दोहन
प्रकृति का दोहन
धरा विनाश सहे
नियति नटी
मानव को नचाये
चाहे ना चाहे
बहु रंग दिखाए
मनु जान ना पाए
1 comment:
asha sharma dohroo
11 August 2014 at 21:37
बहु रंग दिखाए
मनु जान ना पाए
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बहु रंग दिखाए
ReplyDeleteमनु जान ना पाए