ज्योति-कलश
Tuesday, 10 March 2015
मुक्तक
ठूँठ सा था दरख्त अकेला खड़ा
फूल पत्तियो का था मेला बड़ा
पतझर का मौसम विकराल हुआ
फिजां बसंत पतझर अकेला खड़ा
शान्ति
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