कमरे में सुबह की धूप थी
गलियारे में सूरज बैठा था
वो धूप सेकती बैठी
दिसम्बर की हल्की धूप थीं
जाड़ा कड़ाके का
हवा का रुख बदला था
शून्य सा मुख
सलवटे स्वर की उभरी थी
मीठी और दुसह थी ।
उभरा कोई विरही गीत
मन मीत की याद ठहरी
आसमान साफ था
कुहासे की तैयारी ।
गलियारे में सूरज बैठा था
वो धूप सेकती बैठी
दिसम्बर की हल्की धूप थीं
जाड़ा कड़ाके का
हवा का रुख बदला था
शून्य सा मुख
सलवटे स्वर की उभरी थी
मीठी और दुसह थी ।
उभरा कोई विरही गीत
मन मीत की याद ठहरी
आसमान साफ था
कुहासे की तैयारी ।
शान्ति पुरोहित
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