गाँव में स्कूल नही था । कारण गाँव में जो बस आती थी वो दूसरे दिन ही वापस जा पाती थी । कोई भी अध्यापक गाँव में रहना नही चाहता था। सरपंच ने अपने स्तर पर बहुत कोशिश की शहर जाकर कलेक्टर और शिक्षा मंत्री से गुहार लगाई ।पर कुछ नही हुआ। कहते है ना ” जहाँ चाह वहाँ राह ” गाँव के ही रहने वाले कुछ अध्यापक जो सेवा निवृत होकर आ गए थे उन्होंने गाँव के बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया । भवन नही होने की स्थिति में गाँव के ही एक टूटे फूटे अहाते में ही बच्चों को पढ़ाया जाने लगा । शहर के स्कूल में एडमिशन और गाँव में पढ़ाई। इससे ये फायदा हुआ कि बच्चों का कीमती समय आने- जाने की परेशानी से बच जाता था। अगले वर्ष मेरिट लिस्ट में आने वाले बच्चों के नाम में गाँव के चार विद्यार्थियो का नाम था।
शान्ति पुरोहित
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