Friday, 13 March 2015

लघुकथा ( बंधन)

( बंधन) 
पति की असामयिक मौत के बाद पीहू पति वियोग की पीड़ा से उबर ही नही पा रही थी। ऐसे हालात में करीब चार माह गुजर गए। एक दिन उसकी स्कूल की सहेली मिलने आयी...जिसे पीहू के साथ घटित घटना का कुछ दिन पहले ही पता चला था। " पीहू तुम कब तक घर में अपने आप को कैद करके रखोगी, पढ़ी-लिखी हो बाहर जाकर किसी काम में अपना मन लगाओ।, रीमा ने पीहू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा। करीब दो घण्टे साथ रह कर रीमा चली गयी। पीहू ने अपने सास-ससुर के सामने बाहर जाकर काम करने की बात की तो सास ने साफ इंकार किया उनका जवाब था कि ..घर में किसी चीज की कमी नही ..ईश्वर का दिया सबकुछ तो है फिर चार पैसे कमाने को निकलोगी तो लोगो की जुबान हमारे लिए अनगर्ल बाते उगलेगी। पीहू ने दबी जुबान में एक बार फिर विनती की " पैसे के खातिर नही अपने मन को बहलाने का भी जरिया है काम करके मेरा वक़्त ही कटेगा।, पर सास के कुछ समझ नही आया ..परिणामः पीहू को चार दिवारी में लगभग बेडियो में जकड़ कर ही रहने को मजबूर होना पड़ा।
शान्ति पुरोहित

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