ज्योति-कलश
Tuesday 2 September 2014
प्रेम विजय/ खुद को मिटाकर / सदैव हुआ प्रेम निहित / लेन देन मानस/ स्वार्थ ही हुआ प्रीत सिंचित / ह्रदय सरलता / कोमल भाव दिल को हार / अमर अनुराग / जग में हुआ *************************शान्ति पुरोहित
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