आज नवरात्रि की पूजा समाप्त कर रमा कुछ देर माता दुर्गा की तस्वीर के आगे बैठे बैठे सोच रही थी कि इस जहान में माँ की महिमा कितनी बड़ी है ,यह नयी क्या कोई किसी को बताने वाली बात है। तस्वीर में बैठी माँ की पूजा और हाड-मांस की बनी जो पुत्र को नौ महीने पेट में रख कितना कष्ट सहन करती है ,उसका इतना निरादर क्यूँ ? सभी को ज्ञान है तीनो लोकों में माता के सामान कोई गुरु नहीं है।
रमा को सोच कर ही हैरानी हो रही है कि या आज की नई पीढ़ी माँ-बाप को बोझ क्यूँ समझ रही है।और ना ही उचित सम्मान ही करती है । वह एक ठंडी सी साँस लेकर अपने गत के बारे में सोचने लगी ......
रमा के पिता समाज के एक जाने माने और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उस ज़माने में लड़कियों को पढाने का कोई चलन नहीं था।बस अक्षर ज्ञान बहुत था।घर के काम सीखना ही जरुरी था। उसकी दादी तो इसके घोर विरुद्ध थी।उनके विचार से लड़कियां अगर घर का काम सीखे तो काम आता है यूँ ही कागज़ काले करने का क्या फायदा। पर उसके पिता का मानना था के अगर कोई लड़की पढेगी तो ना केवल उसका जीवन बल्कि वह आने वाली पीढ़ी को भी सुधार सकती है।
लेकिन रमा आठवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई।दादी की जिद पर रमा की शादी कर दी गई।रमा ससुराल के माहौल में जल्दी ही रम गयी।ससुराल में रमा को वह सब नहीं मिला जो मायके में उसे मायके में मिला था।ससुराल में खेती का ही काम था । उसके पति एक कम्पनी में काम करते थे।
समय का फेर या रमा की किस्मत कहिये ,पानी -वर्षा के आभाव में खेती का काम भी धीरे-धीरे बंद हो गया।अब वह पति के साथ शहर आ गयी।इस दौरान वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थी।पति की तनख्वाह ही थी गुज़ारे को। रमा सोचती के अगर वह भी कुछ पढ़ी होती तो वह भी घर चलाने में अपना योगदान दे सकती थी।वह अपनी जरूरतों को कम करते हुए अपने बच्चों का और घर बहुत अच्छी तरह चला रही थी।उसने अपनी कीमत तो कभी समझी ही नहीं ना ही कभी बच्चों को समझाई।
यह तो होता ही है अगर कोई खुद अपनी कद्र नहीं करता तो कोई और भी उसकी कद्र नहीं करता। हर इन्सान को अपने आप से प्यार तो करना ही चाहिए।फिर बच्चे बड़े हो गए। उनकी शिक्षा भी पूरी हो गयी।बेटी ससुराल चली गयी। बेटे को अच्छी सरकारी नौकरी मिल गयी।अब रमा कुछ राहत की सांस ले रही थी और खुश भी हो रही थी।सोच रही थी के बहू के आजाने पर वह आराम करेगी और खूब सेवा करवाएगी उससे।लेकिन यह एक टूट जाने वाला सपना ही साबित हुआ।
बहू तो नयी पीढ़ी के कुछ आत्म केन्द्रित लोगों में से एक थी।यानि कि नयी पीढ़ी में भी संस्कार वान होते हैं।पर उसकी बहू कोमल ऐसी नही थी।सास-ससुर के लिए कोई सम्मान नहीं था।
रमा ने सोचा था की बहु को वह बेटी से भी ज्यादा प्यार देगी।पर कोमल को रमा के लिए कोई आदर मान नहीं था। उसे बस अपने पति से ही लगाव था। अब यह तो सोचने वाली बात है पति इतना प्यारा और उसको जन्म देने वाली माँ का ऐसा निरादर ...!
बेटा भी धीरे-धीरे बहू के रंग में ढलता गया।
फिर एक दिन उसके पति भी साथ छोड़ चिर निद्रा में सो गए।अब वह बहुत अकेली पड़ गई। कहाँ तो वह सोच रही थी के एक दिन बेटा तीर्थ यात्रा करवाएगा।कहाँ वह अभी भी इस उम्र में भी रसोई को नहीं छोड़ पा रही अपनी आराम परस्त बहू के आगे। हिन्दू संस्कृति में माँ बनना और उस पर बेटे का जन्म होना बहुत सौभाग्य माना जाता है किसी भी स्त्री के लिए।यही सोच कर वह बहू के तीखे बानों को और बेटे की बेरुखी को सहन करती जाती थी।बेटी कभी मायके आती तो अपनी व्यथा उसे सुना कर अपना मन हल्का कर देती।उसे खाने बनाने और खाने का बहुत शौक था ...बनती तो अब भी थी पर खाने के मामले में बहु के ऊपर निर्भर थी। मन मार रह जाती। बहू की दलील थी के ज्यादा खाएगी तो उस उम्र में हजम भी नहीं होगा और पेट भी खराब होगा।
बेटी जब आती तो कुछ छुपा कर दे जाती तो वह खा पाती।
बाहर जाने का मन भी होता तो उसे इजाजत ही मांगनी पड़ती और वह भी कभी मिलती तो कभी नहीं मिलती।जब नहीं जा पाती तो बेबस सी अपने कमरे में पड़ी रहती और सोचती के कलयुग में ये बच्चे अनजाने में अपराध कर रहे हैं।प्रभु इनको माफ़ करें।
यही एक भारतीय नारी के साथ -साथ एक ममतामयी माँ की निशानी है।जो पुत्र अपनी पैंसठ वर्षीय माँ की परवाह नहीं करता उसकी सलामती और तरक्की के लिए व्रत रख रही है।
सोचते- सोचते रमा के आंसू बह निकले।तभी ख्याल आया बेटा बहु तो बाज़ार गए हैं आते ही खाने को मांगेंगे तो क्या दूंगी। जल्दी से हाथ जोड़ , रसोई की तरफ चल पड़ी।
दुर्गा माँ अब भी मुस्कुरा रही थी आशीर्वचन की मुद्रा में ,पर ये आशीर्वचन किसके किये था पता नहीं .....
शांति पुरोहित ...
बहुत -बहुत बधाई शांति जी ब्लॉग के लिए ... बहुत अच्छी कहानी है ...माँ के लिए हर किसी को समर्पित होना ही चाहिए
ReplyDeletebhut shukriya upasna
Deletenice..didi..kya keh diya....
ReplyDeletebhut shukriya kiran
Deleteकिरण शुक्रिया
Deleteबहुत -बहुत बधाई शांति जी ब्लॉग के लिए ...
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
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bhut shukriya madan mohan saxenaji
Deleteमदन मोहन सक्सेना जी शुक्रिया
Deletemaa ke liye samarpit rachna...
ReplyDeleteswagat shanti jee blog ki duniya me:)
meri salah maniye ye word verification hata dijiye, comment post karte samay irritate karta hai:)
ReplyDeleteमुकेश कुमार सिन्हा जी आभार
Deleteआज भी हर माँ को दिल से नमन
ReplyDeleteमाँ श्री है ,शक्ति है, अंजू आपका शुक्रिया
Deleteहार्दिक शुभ कम्नाये ब्लॉग के लिए शांति जी और बहुत ही सुंदर कहानी ...बधाई
ReplyDeleteरमा आभार
DeleteBahut achhi story hai ...
ReplyDeleteमंजू जी शुक्रिया
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