Tuesday 15 December 2015

"मार्गदर्शन"


"मार्गदर्शन"
"बाल विवाह का दंश झेल कर युवा हुई किरण, जीवन के दोराहे पर खड़ी थी। 
पति ने बचपन में हुए विवाह को मानने से इंकार कर दिया, घर वाले अभी भी आस लगाये बैठे थे कि काश ! ये अपने ससुराल चली जाये।
" तभी उसे अपनी प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका की याद आई जा पहुंची उनके घर ।
" मेरा जीवन समाज की थोथी मानसिकता और रीति -रिवाज में उलझ गया है, ऐसे में कोई राह ही नही सूझ रही है।, 
अरे ! इसमें घबराने की और परेशान होने वाली क्या बात है , शिक्षा के मंदिर में चली आओ , मेरा मतलब है तुम अपनी शिक्षा फिर से शुरू करो। 
अध्यापिका जी जब रिटायर हुई तो स्कूल फंक्सन में विशिष्ठ अतिथि सुश्री किरण सिंह ही थी।
शान्ति पुरोहित

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