Saturday 26 October 2013

उतराखंड त्रासदी - धार्मिक अनुष्ठान तथा मानवीय संवेदनाये

           उतराखंड त्रासदी -धार्मिक अनुष्ठान तथा मानवीय संवेदनाये                                                                                                                                                          आज इकीसवी सदी का इंसान वापस आध्यात्मिकता की और जा रहा है| अपने भाग्य को और अच्छा बनाने के लिए मानव ,विभिन प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान करता है;और वो भी तीर्थ स्थान मे जाकर करता है| धारणा ये है कि,जो इन्सान तीर्थ स्थान पर जाकर धार्मिक अनुष्ठान करता है उसका भाग्य जयादा अच्छा रहता है|
                   भाग्य दो प्रकार के होते है|
                              १ - सौभाग्य
                              २ -दुर्भाग्य
          सौभाग्य- दुर्भाग्य का पता तो तभी चलता है,जब भाग्य अपना परिणाम दिखाता है| अभी इसी जून माह मे जो लोग अपने घर से चार धाम यात्रा -बद्रीनाथ,केदारनाथ,गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए निकले,तो उस समय उन्हें अपने भाग्य पर गर्व हो रहा था| और जो किसी कारण वश नहीं जा सके वो लोग अपनी किस्मत को कोस रहे थे|
                        पर वहां पर जो त्रासदी हुई;उसके कारण तो भाग्य की परिभाषा ही बदल गयी| जो गये वो अपने आप को दुर्भाग्य शाली समझ रहे थे| जो नहीं गये सौभाग्य शाली मान कर खुश हो रहे थे|
                          देश के प्रति सजग मिडिया ने जब केदारनाथ मे हुई त्रासदी के समाचार और फोटो दिखाए तो आँखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे| बस जैसे घर मे बैठ कर आंसुओ का सैलाब आ गया हो| कितने छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गये; और कितनी माताओं के सामने उनके जिगर के टुकड़े उनके मासूम बच्चे पानी की तेज धार मे बह गये|
                         इतने छोटे बच्चो को तीर्थ मे ले जाने का क्या अर्थ है| तीर्थ मे तो वानप्रस्थ अवस्था मे आये लोगो को ही जाना चाहिए| जिन्होंने अपनी गृहस्थी की समस्त जिम्मेदारिया पूर्ण कर ली हो|
                         जो लोग त्रासदी के कहर से किसी तरह अपनी जान बचा कर आये है| वो आज भी पूरी नींद सो नहीं पा रहे है| उनकी आँखों के सामने वो ही खौफनाक मंजर घुम रहा है| आज भी बहती हुई लाशे दिखाई दे रही है|
                      सेना के जवानो ने बहुत मदद की है| उनकी जितनी तारीफ की जाये कम है| पर लोग इतने है कि किसको बचाये,किसको छोड़े| सेना के जवान औरतो,बच्चो और बुजुर्गो को निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा रहे है| अगर आदमी लोग वहां से बच कर नहीं आये तो,बच कर आने वाली औरतो,बच्चो की जिन्दगी अपने आदमियो के बिना बदतर हो जाएगी|
                      पर सोचने वाली बात है, कि इतनी बड़ी आपदा मे भी लोग सियासत करना नहीं छोड़ते है| -राजनेता -मिडिया वाले -बचे हुए दुकानदार और कुछ आर्मी वाले| इन सबके बारे मे जो बाते सुनी- सुनकर बहुत दुःख हुआ| कैसी अमानवीयता है, इन लोगो मे कि लाशो के ढेर पर भी अपनी रोटिया सेंक रहे है|
                    जब सोनिया गाँधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उतराखंड का हवाई दौरा किया तो सवाल उठा युवराज को विदेश मे ही रहने दो उनको यहाँ की तखलीफ़ से क्या मतलब है| मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि इतनी बड़ी आपदा के वक़्त भी लोगो का ध्यान इन बातो की और कैसे जाता है|
                     गुजरात के मुख्या मंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा 'गुजरात मे तखलीफ़ आयी तो मैंने एक दिन मे हजारो लोगो को बचया था| तो यहाँ वो किसके आमन्त्रण का इंतजार कर रहे है| उन्होंने त्रासदी से पीड़ित लोगो को बचाने के बजाय केदारनाथ के मंदिर को बनवाने का प्रस्ताव उतराखंड के मुख्या मंत्री के समक्ष रखा|
                अगर मिडिया वाले सजग नहीं होते तो हम कभी इतना सब कुछ नहीं देख पाते| वो बहुत कुछ दिखाते है| पर वो भी दो मिनिट की न्यूज़ दिखाते है विज्ञापन ज्यादा दिखाते थे| शायद न्यूज़ एजेंसिया भी इस वक़्त इस बारे सोचना भूल गये हो| पर लोगो को इससे मानसिक थकान और गुस्सा ज्यादा आता था|
                कोई एक भी ऐसा न्यूज़ चैनल नहीं है जो ये समझे की जो घर मे बैठ कर आँखे फाड़-फाड़ कर अपने अपनों की खबर पाने के लिए टीवी के सामने बैठे है| निरंतर उनकी आँखों से आंसू बह रहे है| पर नहीं कोई नहीं समझता उनकी पीड़ा|
                जो तीर्थ यात्री उस भयंकर त्रासदी से बच कर आये और उन्होंने बताया कि ऐसे समय भी कुछ लालची लोगो ने अपना लालच बरकरार रखा एक पानी की बोतल १०० रुपया मे और एक ५ रुपया वाला बिस्किट का पैकेट ५० रुपया मे देते हए उनकी रूह बिलकुल भी नहीं कांपी? सुनकर आत्मा सिहर जाती है कि क्या मानवीय संवेदनाये बिलकुल नहीं बची| मौत के ऐसे भयानक तांडव मे फंसे लोगो के साथ ऐसे कैसे कर सकते है| क्या उनमे मानवोचित भावनाए नहीं है| या वो जड़ थे| लोग क्यों इतना पाप करते है?
                   नेपालियों मे तो जैसे मानवीय संवेदना मर ही गयी| यात्रा मे फंसी परेशान औरतो को जंगलो मे ले जाकर उनकी इज्ज़त पर ही डाका डाल दिया| उनको ऐसे वक़्त मे भी भगवान का डर नहीं लगा| तो कभी ना कभी तो भगवान अपना प्रकोप दिखाते ही है| केदार नाथ का मंदिर वैज्ञानिक कारणों से बचा है पर लोगो ने इसमें भी अन्धश्र्धा फैलाई पर गौरी कुंड के गौरी मंदिर का महत्व कम तो नहीं है फिर वो क्यों नहीं बचा पूरा का पूरा पानी मे बह गया
                    एक छोटी सी बच्ची से जब मिडिया वालो ने बात की, तो उसने बताया कि ''मै और मेरा भाई परिजनों से आगे निकल गये थे| रस्ते मे देखा एक पांच साल का बच्चा पानी-पानी करता मर गया| वहां पर और भी बहुत सारे बुजुर्ग लोग फंसे हुए पानी-पानी कर रहे थे| पास ही कुछ सेवादार बैठे बतिया रहे  थे| बालिका ने छह किलोमीटर दूर झरने से पानी लाकर उन सब की जान बचाई| और समर्थ लोग बैठे रहे| '
                     दुकान वालो ने लागत से ज्यादा पैसा लेकर ऐसे समय मे पीड़ित लोगो को लुटा| क्या भगवान ऐसे लोगो को कभी माफ़ करेंगे ? शायद कभी नहीं| आने वाले दिनों मे क्या होने वाला है? पता नहीं| पर इन सब से सीखने वाला सबक येही है कि जियो तो ऐसे जियो कि अपने अपनों की वेदना को संवेदना बना कर हर सम्भव उनकी मदद को तत्पर रहो| बाकि सब तो उपर वाले के हाथ है|
    शांति पुरोहित 

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