Monday 1 April 2013


खुशी


‘सूरज,की पहली किरण जैसे ही धरती पर अपनी लालिमा बिछाती है...नीरू रोज सुबह सूरज के निकलने कि पहले ही उठ जाती थी...और सूरज का स्वागत करती थी | ये ही वो वक़्त था जिसे वो अपने लिये जीती थी |जैसे ही सूरज की किरण धरती पर आती है ,वो उन्हें अपनी बांहों में समेट लेती और दस मिनिट तक तक आँखे बंद करके खुद मे खो जाती है |उसी वक़्त घर मे से आवाजे आनी शुरू  हो जाती है | ‘मम्मी जल्दी क्यों नहीं उठाया,मुझे आज जल्दी कालेज जाना था , नीरू के बेटे जीत  आवाज आई अभी वो इसका कुछ जवाब दे,तभी नीरू की तेरह की साल की बेटी पिंकी कहती है,;मम्मी आज मेरे टिफिन मे सेंडविच बना कि डालना मेरे फ्रेंड्स को बहुत पसंद है |
                       जैसे ही ये दोनों काम नीरू ख़तम करती है,तभी ससुर जी की आवाज आती है की’नीरू चाय मुझे बाहर आँगन मे ही दे जाना आज यही परर बैठ कर चाय पिने का मन कर रहा है |’ तभी सासुजी कि आवाज नीरू के कानो मे आती है ,;नीरू बेटा मुझे चाय कमरे मे ही दे जाना बाहर थोड़ी ठण्ड है |एक को इधर एक को उधर,तभी उसे याद आया की आज ‘ नीरव , की शर्ट भी इस्त्री करनी है,नहीं तो सुबह –सुबह डांट खानी पड़ जाएगी | वो दौड़ कर इस्त्री करने चली गयी |
                       फिर उसने नीरव को उठाया......नीरव चाय पीता है तब रोज दस मिनिट उनके पास बैठना पड़ता है | ये दस मिनिट वो नीरव के लिये मुश्किल से निकालती ,अपने आप से ही सवाल करती है कि वो इतने से वक़्त मे क्या काम लेगी | नीरव उसे कितना प्यार करता है पर वो दस मिनिट भी नहीं निकाल पाती | नीरव को नीरू का दस मिनिट उसके पास बैठना समझ ही नहीं आता,क्योंकि उस वक़्त नीरू का ध्यान उसका टिफिन बनाने मे लगा रहता था |
                     सबके चले जाने के बाद वो खुद की चाय ले कर बैठी ही थी की ससुर जी की आवाज आई ‘नीरू मेरा तौलिया कहाँ है ,वो चाय रख कर तौलिया देने गयी वापस आई तब तक चाय ठंडी हो गयी |वैसी ही चाय को पीकर वो चल दी वापस बाकि के काम निपटाने | शाम कब हो जाती थी उसे पता नहीं चलता था |अब वापस वो ही शाम का खाना बानाना वो ही शिकायते,ये क्यों बनाया ,ये क्यों नहीं बनाया ,क्या करती हो सारा दिन |रोज रोज ये ही सब सुन कर अब नीरू तंग आगयी थी |
            आज उसकी शादी की शालगिरह है,पर घर मे किसी को भी याद नहीं,सब अपने अपने काम मे जुटे थे,और अपनी अपनी जरुरत की चीज मांगने मे लगे थे |यहाँ तक कि खुद नीरव को भी अपने शादी की शालगिरह याद नहीं थी | सब चले गये तो नीरू की आँखों मे आंसू आगये | अपनी सासुजी के पास बैठ कर रोई और उन्हें कहा कि शायद माँ अपने बेटे की शादी इसलिए करती है कि उसे आगे जाकर कोई काम न करना पड़े ,राधा देवी उसकी सासुजी सुनकर कुछ नहीं बोली ,बस उठ कर अपने कमरे मे चली गयी |
रात को’ नीरव, आया बच्चे आये | वो रात का खाना बनाने मे जुट गयी पर अन्दर ही अन्दर जल रही थी | कि किसी को कुछ याद नहीं,लगता है ,मै इस घर कि कामवाली बाई हूँ,जो दिन भर इनको सभालने मे लगी रहती है | तभी घर कि बेल बजी और एक आदमी हाथ मे केक लिये खड़ा है जिस पर लिखा हैniru from sasu maa सब देखते रह गये,नीरू ने सासुजी के पैर पकड़ कर माफ़ी मांगी वो दिन मे उनको सुना कर आई थी इसलिए,तभी सास राधा देवी ने उसे दो टिकिट दिए और कहा कि जाओ घूम कर आओ दार्जिलिंग तुम और नीरव |
राधा देवी ने नीरू से कहा ‘’मे जानती हूँ तुम हम सब को सँभालने मे कितनी परेशां होती हो,पर नीरू ये घर इसलिए ही टिका है कि तुम अच्छे से संभालती हो ,तुम इस घर की काम वाली बाई नहीं ,घर की मालकिन हो | बड़े नसीब वाले है हम ,हमें तुम जैसी बहु मिली ,जो गृह लक्ष्मी बन कर इस घर मे आई है |
अब राधा देवी ने नीरू से कहना शुरू किया ‘’जब मै इस घर मे बहु बन कर आई ,मेरी सासुजी का सवभाव बहुत तेज था ,बात बात मे उनका टोकना रोज का काम था | मै उनसे बहुत डरती थी ,बाद मे मैंने सोचा ऐसे कसे चलेगा |धिरे धिरे मैंने उनके दिल मै अपने लिये जगह बनानी शुरु की ,और कुछ ही सालो मे उनकी और मेरी पक्की दोस्ती हो गयी | अब हम दोनों के बिच मे माँ बेटी का रिश्ता कायम हो चूका था | अब घर मे सब खुश थे | तुम्हारे ससुर जी बहुत खुश हुए मेरे इस काम से ‘’तुमने कसे इतनी जल्दी मेरी माँ का मन जीत लिया ,सच मे तुम ने इस घर को नरक होने से बचालिया मे  बहुत खुश हूँ |

शांति पुरोहित
shanti.purohit61@gmail.com

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